डाडा नागराज मंदिर | Danda Nagarja Temple In Uttarakhand
उत्तराखण्ड देवी भूमि कहा जाता है यहाँ पर देवी देवताओ का वास है उन्ही देवी देवताओ के मंदिर मैं से Danda Nagarja Mandir भी एक है वैसे तो देव नागराजा का मुख्य धाम उत्तरकाशी के सेममुखेम में है पर कहा जाता है की सेममुखेम और Danda Nagarja Mandir एक समान ही है हर साल यहाँ विदेशी पर्यटक मंदिर की अद्भुतता को देखने और महत्व जानने आते है
ये मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले मैं बनेलसयुह पट्टी मैं स्तिथ है यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के डाडा नागराज के सवरूप को समर्पित है यहाँ का नज़ारा देखने लायक होता है यहाँ का मौसम बहुत ही बढ़िया होता है लोग यहाँ दर्शन करने दूर दूर से आते है स्थानीय लोगो के दवारा इस मंदिर की सथापना 140 वर्ष पहले हुई थी .
रास्ता : Danda Nagarja Mandir की दूरी पौड़ी मुख्य शहर से 37 किलोमीटर है रेलवे स्टेशन से आने वाले लोगों के लिए नजदीक का स्टेशन कोटद्वार है जो की यहाँ से 100 किलोमीटर की दूरी पर है रेलवे स्टेशन से आप यहाँ बस या टैक्सी से पहुच सकते है और हवाई द्वारा आने वालों के लिए नजदीक का हवाई अड्डा देहादून का जोलीग्रांट है
जो की यहाँ से 131 किलोमीटर की दूरी पर है मंदिर के आस पास स्तिथ काफल, बांज, बुरास के घन्ने पेड़ मंदिर को ओर भी आकर्षित बनाते है ये मंदिर विदेशो से आये लोगों को भी अपनी और आकर्षित करता है मंदिर की उचाई समुंदर तल से एक हज़ार आठसो की है मंदिर का इतनी उचाई होने के कारण मंदिर जाने का रास्ता देखने लायक होता है जब लोग जाते है तो उन्हें बहुत ही सुंदर नजारे देखने को मिलते है और मन को शांति सी महसूस होती है
एक पौराणिक कथा के अनुसार भागवान श्री कृष्ण इस स्थान पर आये और उन्हें ये स्थान बहुत ही पसंद आया और भा गया फिर उन्होंने नाग का रूप धारण किया और लेट लेट के इस जगह की परिक्रमा की और वह यहाँ नागराजा के रूप मैं रहने लगे तब से इस मंदिर का नाम को Danda Nagarja Mandir के नाम से जाना जाने लगा .
कहानी और महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार भागवान श्री कृष्ण इस स्थान पर आये और उन्हें ये स्थान बहुत ही पसंद आया और भा गया. फिर उन्होंने नाग का रूप धारण किया और लेट लेट के एस जगह की परिक्रमा की और वह यहाँ नागराजा के रूप मैं रहने लगे तब से इस मंदिर का नाम को डाडा नागराज मंदिर के नाम से जाना जाने लगा
मंदिर से जुडी पौराणिक कथा डाडा नागराज कोटविकासक्षेत्र के चार गाँव नौड, रीई, सिल्सु एव लसेरा का प्रसिद्ध धाम है जिसका इतिहास 140 साल पुराना है| यहाँ की मान्यता के अनुसार 140 साल पहले लसेरा गुलाम जाति के पास एक दुधारु गाय थी जो डाडा मैं स्थित एक पत्थर को रोज़ अपने दूध से नेहलाती थी जिसकी वजह से घर के लोगो को उसका दूध नहीं मिल पता था इसलिए गाय के मालिक ने गुस्से मैं आकार गाय पर कुल्हाड़ी से वार किया जिसका वार गाय को कुछ न कर पाया और सीधा जा कर उस पत्थर पर लगा जिस वजह से वो पत्थर दो भागों मैं टूट गया इसका एक भाग आज भी डाडा नागराज मैं मौजूद है इस क्रूर घटना के बाद गुलाम जाति पूरी तरीके से समाप्त हो गई |
हर साल बैसाखी के अवसर के अगले दिन 13 अप्रैल और 14 अप्रैल को एक बहुत ही विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिस मैं लोग दूर दूर से इस मेले को देखने आते है दूर दूर से श्रद्धालु लोगो की भीड़ उमड़ कर इस मेले को देखने के लिए शामिल होते है इस समय मंदिर का नज़ारा देखने लायक होता है मदिर को बहुत सुंदर तरीके से सजाया जाता है जिसे देखने के लिए लोग हर जगह से आते है और दर्शन करते है और मेले का हिसा बनते है .
इस अवसर पर डाडा नागराज को ध्वज और घंटियां अर्पित की जाती है यहाँ पर लोग मन्नत पूरी होने पर लोग घंटियां बांध कर जाते है मंदिर मैं आपको हर जगह घंटियां बंधी हुई दिखेंगे जो श्रद्धालु दवारा बाँधी गई होती है मंदिर के बहार सेकड़ो घंटियां बन्धी मिलती है डाडा नागराज मंदिर से आप चंद्र्कुट पर्वत पर स्तिथ माता चन्द्रबदनी, भैराव्गाड़ी, यागेश्वर और कन्डोलियाँ की पहाड़ियों के दर्शन कर सकते है. पुरे पौड़ी जिले मैं श्री कृष्ण का यह मंदिर आस्था का मुख्य केंद्र है
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