Thu. Jul 4th, 2024

    उत्तराखंड मैं बहुत जगह है जहाँ आप घूम सकते है उन मैं से almora district भी बहुत ही प्यारा शहर है यहाँ जब आप रोड से जाते है तो आपको घुमाव वाले रास्ते देखने को मिलते है रास्ते में आपको पहाड़िया और हरियाली भी देखने को मिलती है almora district 16वी शताब्दी के कुमाऊ साम्राज्य पर शासन करने वाले चंद्रवंशी राजाओ की राजधानी थी अल्मोड़ा एक पर्यटक स्थल है यहाँ पर लोग घुमने फिरने आते है अल्मोड़ा शहर को अंग्रेजो ने बसाया था अंग्रेजो को भी almora district बहुत पसन्द था अंग्रेज हमेशा गर्मियों की छुट्टियों मैं यहाँ पर आया करते थे अल्मोड़ा दो मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध है उन मिठाइयों के नाम बाल मिठाई और सिंगोडी मिठाई है बाल मिठाई बनाने की शुरुवात अल्मोड़ा से ही हुई थी.

    almora district uttarakhand

    रास्ते की दूरी

    चंडीगढ़ से काठगोदाम की दूरी 505 किलोमीटर है दिल्ली से काठगोदाम की दूरी 286 किलोमीटर है लखनऊ से काठगोदाम की दूरी 355 किलोमीटर है मुंबई से काठगोदाम 1680 किलोमीटर है काठगोदाम मैं रेलवे स्टेशन है पंतनगर मैं हवाई अड्डा है काठगोदाम से अल्मोड़ा 82 किलोमीटर है

    अल्मोड़ा मार्किट

    अल्मोड़ा मार्किट पूरा पहाड़ी पर ही बसा हुआ है अल्मोड़ा काफी ऊंचाई पर स्तिथ है इस लिए यहाँ पर मौसम बहुत अच्छा बना रहता है अल्मोड़ा मार्किट मैं घुमने के लिए कई जगह है जैसे खगमरा का किला, मल्ला महल का किला लाल मंडी का किला है यह किले चन्द शासको का जब शासन था ये किले तब उन्होंने ही बनाये थे उसके बाद जब अंग्रेजो का शासन आया तो ये उनके अधीन हो गए थे लाल मंडी का किला पलटन बाज़ार मैं स्तिथ है लाल मंडी किला कल्याण चन्द ने बनाया था खगमरा का किला चंन्द शासक भीष्म चंन्द ने बनाया था मल्ला महल का किला इसको कल्याण चन्द ने बनाया था यह दोनों अल्मोड़ा पलटन बाज़ार मैं स्तिथ है

    बाल,मॉल और पटाल का मतलब

    almora district के लिए कहा जाता है की यह तीन चीजों के लिए प्रसिद्ध है बाल,मॉल और पटाल है बाल मतलब है  यहाँ की बाल मिठाई है माल का मतलब यहाँ की सुंदर माल रोड है और पटाल का मतलब पहाड़ो मैं एक पत्थर होते है जिन्हें पटाल कहा जाता है यहाँ पर उस पत्थर की पूरी मार्किट है जिसे पटाल मार्किट कहा जाता है

    almora district uttarakhand

    कैंची धाम

    जब आप almora district जाते है तो रास्ते मैं ही कैची धाम मंदिर पड़ता है यहाँ पर प्रसिद्ध नीम करोली बाबा का आश्रम और मंदिर है नीवकरोली बाबा के भक्त विदेशो तक है कैंची धाम नैनीताल से 23 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा रोड पर है यह मंदिर समुन्द्र तल से 1400 मीटर 4600 फुट की ऊंचाई स्तिथ है इस मंदिर के दर्शन करने बहुत श्रद्धालु आते है बाबा जी को कई लोग हनुमान जी का अवतार मानते है यह मंदिर शिप्रा पहाड़ छोटी सी नदी के किनारे है इस मंदिर को नीवकरोली बाबा ने अपने भक्तो के सहयोग से 1962 में बनवाया था यहाँ पर दो घुमाऊदार मोड़ है जो की कैंची की तरह है इस लिए इस मंदिर का नाम कैंची धाम मंदिर पड़ गया सन्यास लेने से पूर्व नीवकरोली बाबा का नाम पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा था छोटी उम्र मैं साधना कर ज्ञान प्राप्त किया और अपना जीवन लोक कल्याण मैं समर्पित कर दिया बाबा जी को कोई भी घटना होने का पहले से ही पता होता था

    ब्रिटिश काल मैं एक बार बाबा जी ट्रेन मैं सफ़र कर रहे थे तब टिकट कलेक्टर ने युवा योगी बाबा को टिकट न होने पर ट्रेन से उतार दिया इसके बाद ट्रेन बहुत कोशिश करने के बाद भी ट्रेन आगे नहीं बढ़ी फिर किसी ने टिकट कलेक्टर को कहा की बाबा जी से माफ़ी मांग ली जाये तो शायद ट्रेन आगे बड़े इसके बाद रेलवे कर्मी को अपनी गलती का एहसास हुआ उसने बाबा जी से माफ़ी मांग ली ओर सम्मान पूर्वक सीट पर बिठाया तब जा कर ट्रेन आगे बड़ी जिस जगह पर बाबा जी को उतरा गया था उस जगह का नाम नीव करोली है जो की इस घटना के बाद प्रसिद्ध हुआ उसे बाद उन्हें नीव करोली अथवा नीम करोली कहा जाने लगा बाबा जी कभी भी कहीं भी अन्तर ध्यान हो सकते थे बाबा जी किसी के भी आँखों मैं दुःख और आंशु देखते ही द्रवित हो उठते थे बाबा जी के भक्त रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने बाबा जी के चमत्कारों पर एक किताब लिखी जिस किताब का  नाम मिरकल ऑफ़ लव था इसमें 1943 की ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से इस  घटना का जिक्र है .

    नंदा देवी मंदिर

    नंदा देवी मंदिर को गढवाल और कुमाऊ की इस्ट देवी माना जाता है ये मंदिर अल्मोडा मार्किट के बीचो बीच स्तिथ है इस मंदिर में देवी दुर्गा का अवतार विराज्मान है नंदा देवी माता दुर्गा का अवतार और भगवान शकर की पत्नी है नंदा देवी गढ़वाल के राजा दक्षप्रजापति की पुत्री है इस लिए सभी गढ़वाल और कुमाऊ के लोग नंदा देवी जी को इस पर्वतांचल की पुत्री मानते है इस मंदिर का इतिहास 1000 साल से भी पुराना है  नंदा देवी जी को नव दुर्गा मैं से एक बताया गया है चन्द शासको ने ही नंदा देवी की पूजा करना शुरू किया था यह बहुत ही सुंदर मंदिर है यहाँ पर सभी मनोकामनाये पूरी होती है

    चितई गोलू देव मंदिर

    चितई गोलू मंदिर का मंदिर अल्मोडा से 9 किलोमीटर की दुरी पर है यहाँ पर मंदिर के शुरू होते ही बहार छोटी छोटी दुकाने है  यहाँ पर बहार से ही आप भगवान के लिए प्रसाद ले सकते है इस मंदिर मैं आपको बड़ी बड़ी घंटियाँ टंगी हुई मिलेगी जो की यहाँ के श्रद्धालु लोगो ने चढाई होती है भगतो दवारा टंगी हुई चिठियाँ भी आपको दिखेंगी पुजारियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 17वी सदी मैं हुआ था समय समय पर इसको नए तरीके से इसको बनाते गए गोलू देव को गोरभेरव भी कहा जाता है इन्हें शिव जी का अवतार कहा जाता है यहाँ पर लोग सफ़ेद वस्त्र भी गोलू देव जी को चढाते है गोलू देवता के दर्शन करने के बाद उनकी परिकर्मा भी की जाती है

     इस मंदिर मैं एक  मान्यता है की जिस इन्सान को न्याय नहीं मिलता वो व्यक्ति एक चिठ्ठी पर अपनी गुहार लिख देता है और मंदिर मैं लाल चुनरी के साथ बांध देता है गोलू देवता उन्हें न्याय दिलाते है और मन्नत पूरी हो जाने पर भक्त घंटी चढाते है और अपनी बन्धी हुई चुनरी खोल देते है.

    कटारमल सूर्य मंदिर

    कटारमल सूर्य मंदिर almora district से 16 किलोमीटर की दुरी पर है ये मंदिर रानीखेत मार्ग पर ऊची पहाड़ी पर बसे गाँव अधेली सुनाल मैं स्तिथ है  यह मंदिर प्राचीन सूर्य मंदिर है ये मंदिर अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है मंदिर के बहार छोटी छोटी दुकाने भी है जहाँ पर आप प्रसाद ले सकते है गेट से मंदिर की दुरी लगभग 600 मीटर की है निचे से उपर की ओर पैदल जाना पड़ता है जाने का मार्ग बहुत ही अच्छा है इस मार्ग पर चलते हुए आपको आस पास के गाँव देखने को मिलेगे इस मंदिर का निर्माण कत्युरी शासक कटारमल ने करवाया था जो उस समय मध्य हिमालय के क्षेत्र मैं शासन कर रहे थे यहाँ पर 45 छोटे बड़े मंदिरों का निर्माण अलग अलग काल मैं हुआ है वास्तु लक्षणों से लगता है की ये 13वी शताब्दी मैं बना मंदिर है इस मंदिर का निर्माण कत्युरी शासक कटारमल ने एक दिन मैं करवाया था इस मुख्य मंदिर का शिखर खंडित है इसकी वजह यह मानी जाती है की मंदिर निर्माण की आखिरी समय मैं सूर्य उदय होने लगा था जिस से मंदिर के निर्माण का कार्य रोक दिया गया था और फिर ये हिसा अधुरा ही रह गया जिसको आज के समय मैं भी देखा जा सकता है कहा जाता है की यहाँ पर देवी देवता भगवान सूर्य की अराधना करते थे यह मंदिर देखने मैं बहुत ही सुंदर है

    जागेश्वर धाम

    जागेश्वर धाम almora district से 35 किलोमीटर की दुरी पर है इस मंदिर को देख कर लगता है की यह मंदिर 7वी शताब्दी से 12वी शताब्दी के मध्य बना हो यह मंदिर कतुरी राजाओ ने बनाया था फिर इसकी देख रेख चन्द वश दवारा किया गया था देवदार वृक्ष के घने जंगलो मैं स्तिथ ये मंदिर ये भगवान शिव को समर्पित है  इस धाम मैं 125 छोटे बड़े मंदिरों का समूह है जागेश्वर धाम के जो सभी मंदिर है वो केदारनाथ की शैली मैं बने हुए है यह भगवान शिव जी का प्रसिद्ध मंदिर है यह धाम अपने वास्तु कला के लिए बहुत प्रसिद्ध है इस मंदिर के अंदर दो तने वाला देवदार का वृक्ष है कहते है इसकी परिकर्मा करने से मनोकामना पूरी होती है सर्दियों के मौसम मैं यहाँ पर बहुत बर्फ गिरती है फिर से मंदिर देखने मैं बहुत ही सुंदर और अद्भुत लगता है.

    खगमरा का किला

    खगमरा का किला अल्मोड़ा बाज़ार से 5 किलोमीटर की दूरी पर धारा नौला मैं पुलिस लाइन के पास है खगमरा का किला चंन्द शासक भीष्म चंन्द ने बनाया था यहाँ किल्ले मे आपको पुराने पेड़ देखने को मिल जायेगे यह किला बहुत ऊंचाई पर स्तिथ है यहाँ से आपको सुयाल नदी भी दिखाई देती है किले से नीचे देखने का नज़ारा बहुत ही सुंदर होता है आस पास के गाँव देखने को मिल जाते है इस किले को बहुत ही बेहतर तरीके से बनाया गया है जो की देखने मैं बहुत ही अद्भुत लगता है

    लाल मंडी का किला

    लाल मंडी का किला अल्मोड़ा के पलटन बाज़ार मैं स्तिथ है लाल मंडी का किले को कल्याण चन्द ने बनवाया था लालमंडी किले को पल मोयरा नाम से जाना जाता है यहाँ पर लोग घुमने दूर दूर से आते है बाज़ार के पास होने के कारण यहाँ पर लोग आराम से घूमते हुए चले जाते है देखने मैं यह महल बढ़िया है विदेशों से भी लोग यहाँ पर देखने आते है और फोटोग्राफी भी करते है सुंदर सुंदर चित्र खीचते है

    मल्ला महल

    मल्ला महल अल्मोड़ा बाज़ार के बीचो बीच है मल्ला महल इसे चन्द शासको ने अपना गढ बनाया और मल्ला महल का निर्माण किया मल्ला महल कल्याण चन्द ने बनाया था कुमाऊ के  इतिहास मैं भी इसकी चर्चा है ये महल देखने मैं बहुत ही अद्भुत है इस महल में आपको बहुत ही अद्भुत कलाकारियाँ दीवारों पर देखने को मिलेगी यह बहुत ही सुंदर कलाकारियाँ बनाई गई है इस के अंदर राम मंदिर भी है यहाँ पर लोग घुमने आते है बाजबहादुर दुवारा 1671 मैं गढवाल के जूनियां गढ के किले से विजय के बाद नंदा देवी की मूर्ति भी यहाँ पर स्थापित की गई थी फिर काल्भेरव की भी मूर्ति स्थापित की गई इस महल मैं मंदिर मैं लगे चित्रों से इसकी पुस्थी करना सभव है की ये बहुत ही पुराने काल मैं बना हुआ महल है  .

    डोलीडाना मंदिर

    डोलीडाना मंदिर जाने के लिए 2 किलोमीटर का ट्रेकिंग करके जाना पड़ता है ये बहुत ही सुंदर मंदिर है कर्बला जगह का नाम है जहाँ से 2 किलोमीटर का ट्रेकिंग करके जाना पड़ता है ट्रेकिंग करते समय आपको बहुत सारे पेड़ दिखते है 1961 मैं यहाँ पर 8 बटालियन डोगरा रेजीमेंट आई थी तो उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी उन्होंने तनमन से इस मंदिर का ये रूप दिया 9 अप्रैल 1961 मे इस मंदिर का उद्घाटन ब्रिगेडियर बिरेश्वर नाथ जी ने किया था  जब आप यहाँ पर ट्रेकिंग करते हुए जाते है तो रास्ते मैं आपको बहुत बढ़िया सुंदर नज़ारा देखने को मिलता है

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