Fri. Jul 5th, 2024

    उत्तराखण्ड को देव भूमि कहा जाता है उत्तराखंड बहुत ही बढ़िया पहाड़ो से घिरा हुआ है यहाँ हमेसा ही मौसम  बहुत ही अच्छा रहता है लोग यहाँ दूर दूर शहरोँ से और  विदेशो से देखने आते है. क्यूँकि यहाँ देखने लायक सुंदर पहाड़ और देवी देवताओ के मंदिर है और उन ही देवी देवताओ के मंदिर मैं से एक chandrabadni mandir है जिनके के बारे मैं आपको बताना चाहता हूँ .

    रस्ते की जानकारी : chandrabadni mandir बहुत ही सुंदर मंदिर है जो की टिहरी जिले के हिन्डोलाखाल विकासखंड मैं चंदरकूट पर्वत पर समुंदर तल से लगभग आठ हज़ार फीट ऊंचाई पर स्थित है. ये मंदिर देवपयाग से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है निकट रेलवे स्टेशन से ऋषिकेश से मंदिर की दुरी 106 किलोमीटर है टिहरी से मंदिर की दुरी 47 किलोमीटर है श्रीनगरं से 70 किलोमीटर की दूरी पर है कंडीखाल से सिलोड़ होते हुए 8 किलोमीटर पैदल मार्ग के बाद chandrabadni mandir आता है .

    हवाई अड्डे जोलीग्रांट से लगभग 138 किलोमीटर की दूरी पर है . यहाँ पर लोग बहुत ही श्रद्धा से दर्शन करने आते है जगत गुरु शकराचार्य जी ने शक्तिपीठ की स्थापना की थी धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि मैं यह चन्द्रबदनी शक्तिपीठ उतराखंड की सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है इस शक्तिपीठ का देवीभागवत और महाभारत मैं इसका विस्तार से वर्णन किया गया है प्राचीन ग्रंथों मैं भुवनेश्वरी सिद्धपीथ के नाम से chandrabadni mandir का उलेख किया गया है .

    chandrabadni mandir image
    पर्वतों का सुंदर नजारा  

    कहानी और महत्व: पुराणिक मानिताओ के अनुसार दकशपरजापति ने कनखल नगरी मैं यग्य का आयोजन किया लेकिन अपने दामाद शंकर महादेव भगवान् जी को उस यग्य मैं आमंत्रित नहीं किया माता सती को जब यग्य के विषय मैं जब ग्यात हुआ तो माता सती ने महादेव से यग्य मैं साम्लित होने की इच्छा व्यक्त की लेकिन महादेव ने यग्य मैं जाने से इंकार कर दिया माता सती अपनी जिद पर अड़ी रही और यग्य मैं चली गई माता सती ने जब देखा की उनके पिता के यग्य मैं शंकर भगवन का कोई स्थान नहीं रखा है तो कारण पूछने पर दकशपरजापति ने शंकर महादेव को अपमान जनक शब्द कहे और महादेव का यह अपमान देख कर माता सती हवनकुंड मैं कूद पड़ी.

    महादेव को माता सती की आत्मदाह की सुचना मिलने पर महादेव ने दकशपरजापति का सर काट कर यग्य को भंग कर दिया और माता सती का शव को कंधे पर उठा कर कैलाश की और चलने लगे जिसको देख कर चारो और हाहाकार मच गया .महादेव को शांत करने के लिए विष्णु भगवन ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के 51 खंड कर दिए और वह खंड जहाँ जहाँ गिरे वो खंड शक्ति पीठ कहलाये. चंदरकूट पर्वत पर माता सती का बदन गिरा जिसके कारण इस जगह का नाम चन्द्रबदनी पड़ा. चन्द्रबदनी माँ सती का ही रूप है

    यह भी मान्यता है की महादेव ने यहाँ माता सती के दुःख मैं व्याकुल हो कर उनका का स्मरण किया तथा माता सती ने महादेव को चन्द्ररूप सितल्मुख के दर्शन दिए मंदिर मैं माता की मूर्ति नहीं है मंदिर मैं सिर्फ माता का यंत्र है. स्कंद्पुराण, देवी भागवातपुराण और महाभारत मैं सिद्धपीठ का विस्ताररूप मैं इसका वर्णन मिलता है | प्राचीन ग्रंथो मैं भुवनेशवरी सिद्धपीठ के नाम से इसका उलेख मिलता है |

    चन्द्रबदनी माता के दरबार मैं साल भर तक  भीड़ रहती है लोग बड़े ही श्रद्धा से यहाँ माता के दर्शन करने आते है. यह भी मान्यता है की जो भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है तो वो जरुर पूरी होती है चन्द्रबदनी से सुरकंडा , केदारनाथ, बद्रीनाथ चोटी आदि का बड़ा ही मनमोहक आकर्षित नज़ारा देखने को मिलता है मंदिर परिषद् मैं पूजार गाँव के निवासी ब्राह्मण ही पूजा याचना करते हैं . माता की जहाँ जहाँ अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ का निर्माण हुआ मंदिर के गर्भगृह में माता सवम एक श्रीयंत्र के रूप मैं विराजमान है उनकी कोई प्रतिमा यहाँ नहीं है |

    माँ के श्रीयंत्र को उनका स्वरूप माना जाता है इसलिए उनको स्नान तथा श्रगार करते समय यहाँ पुजारी अपनी आँखों  मैं आज भी पट्टी बांध कर ही मंदिर के गर्भगृह मैं जाते है |लोग  के मान्यताओ के अनुसार आज तक जिसने भी माता के गर्भगृह मैं जाने की चेस्था की वो अँधा हो गया | जो प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारते हुए जो आध्यात्मिक व् शांति का अनुभव होता है उसे शब्दों दवारा कहना संभव नहीं है .सिद्धपीठ चन्द्रबदनी मैं जो भी श्रद्धालु भक्तिभाव से अपनी मनौती मांगने जाते है माँ उनकी मनौती को पुर्ण करती है | मनौती पुर्ण होने पर श्रद्धालु जन कन्दमूल, फल, अगरबती, धुपबती, चुन्नी, चांदी की छत्तर चढ़ावे के रूप मैं समर्पित करते है|

    माता रानी के दरबार से देखने पर नज़ारा कभी कोई शब्दों से बयान नहीं कर सकता है की कितना सुंदर नज़ारा होता है . वहां के नज़ारे को देख कर कभी मन् करता ही नहीं की वापिस जाया जाये . वहां से सुंदर पहाड़ बदल जो साफ़ दिखते है उन्हें देखने का नज़ारा अलग ही होता है मैं सभी से कहूँगा एक बार माता रानी के दर्शन करने जाये जरुर हर इच्छा पूरी जरुरी होती है अगर पूरी मन से अरदास की जाये तो |  

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