Ganga Ji को शान्तनु ने गंगा के तट पर स्त्री रूप में देखा और गंगा जी के मोह मैं शान्तनु ने गंगा जी से विवाह किया और गंगा जी ने शान्तनु को विवाह से पहले कहा की कभी भी अपने मुझे किसी बात के लिए पूछा या रोका तो मैं अन्तर धयान हो जाउंगी . गंगा जी फिर गर्भवती हुई और उन्होंने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया उसके बाद गंगा माँ ने उस पुत्र को गंगा जल मैं प्रवाहित कर दिया शान्तनु को जब इसका पता चला तो उन्हें बहुत ही बुरा लगा पर उनको यह डर था की अगर सवाल किया तो वो छोड़ कर चली जाएगी इस लिए उन्होंने गंगा जी से कोई भी सवाल जवाब नहीं किये और चुप रहे और ऐसे ही माँ गंगा ने अपने सातों पुत्रो को जल मैं पर्वाहित कर दिया जिसका कारण उन सातों को मिला श्राप था जिसके बारे मैं सिर्फ़ गंगा जी को ही पता था आओ जानते है उसके बारे मैं पूरी कहानी विस्तार मैं .
महाभारत पर्व मैं कथा मिलती है की पितु धियो आदि वसु जो की यक्षों की श्रेणी मैं आते थे वो मीरू पर्वत पर विहार कर रहे थे इसी पर्वत पर महऋषि वशिस्ट का आश्रम भी था सभी वसुओ की पत्नियाँ भी साथ मैं थी आश्रम के पास पहुचते ही देव नामक वसु की पत्नी की नज़र आश्रम मैं बन्धी नंदनी गाय पर पड़ी उसने कहा की वो नंदनी गाय को अपनी साखियों के लिए चाहती है देव अपनी पत्नी की बात को टाल ना सके और देव ने आश्रम से नंदनी का हरण कर लिया और हरण के समय महऋषि वशिस्ट आश्रम मैं नहीं थे पर जब वो आये तो उन्हें नंदनी गाय नहीं दिखी . फिर महऋषि वशिस्ट ने नंदनी गाय को बहुत ढूढा पर वो कहीं नहीं मिली.
महऋषि वशिस्ट त्रिकालदर्शी भी थे तो उन्होंने अपने योग बल से सारी घटना को देख लिया तब उन्हें पता चला की देव ने आश्रम से नंदनी गाय का हरण कर लिया है महऋषि वशिस्ट बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने तप जल से वशुओं पर डाल कर मनुष्यों की योनी मैं दुःख भोगने का श्राप दे दिया था .
श्राप मिलते ही सारे वसु दोड़ते हुए .महऋषि वशिस्ट के पास आये और छमा याचना करने लगे और जब महऋषि वशिस्ट का गुस्सा शांत हुआ तब उन्होंने श्राप से मुक्त होने का उपाय भी बताया और कहाँ की अगर Ganga Ji आपको अपने ही जल मैं समाधी देगी तभी तुम्हे इस श्राप से मुक्ति मिलेगी पर ये उपाय सिर्फ सात वसुओं पर ही काम करेगा. देव ने आश्रम से नंदनी गाय का हरण किया था उस पर ये उपाय काम नहीं करेगा और देव को अपने कर्म का फल मनुष्य योनी मैं भोगना पड़ेगा.
वसुओं ने ब्रमाह से और गंगा जी से प्राथना की उसके बाद ब्रमाह जी ने गंगा जी को वसुओं के उद्धार के लिए आदेश दिया फिर माँ गंगा ने स्त्री का वेश धारण कर लिया जिसके बाद शान्तनु गंगा जी पे मोहित हो गए और उन्होंने उनसे विवाह किया और सातों वसुओं को अपने गर्भ से जन्म दिया और उनके उद्धार के लिए उन्हें गंगा जल मैं उनको पर्वाहित कर दिया पर जब आठवें वसु को वो जल मैं पर्वाहित करने गई तो शान्तनु से सवाल कर लिया और उसके बाद गंगा माँ शान्तनु को छोड़ कर चली गई गंगा के जाने के बाद शान्तनु काफी दुखी रहने लगे.
एक बार वो गंगा के तट पर विहार कर रहे थे तो उन्होंने देखा गंगा मैं पानी का प्रभाव भी कम रह गया है कारण जानने के लिए उन्होंने गंगा के विपरीत चलने लगे तभी उन्होंने देखा की एक सुंदर से छोटे बालक ने अपने बाण की शक्ति से गंगा पर बांध बना दिया है जिस से गंगा का पानी रुक गया है .और प्रभाव भी कम हो गया है तभी गंगा माँ प्रकट हुई
शान्तनु को बताया की ये छोटा बालक उनकी आठवी संतान है जिस को भगवान पशुराम से ज्ञान मिला है और इसका नाम देवरथ रखा गया है ये सुन कर शान्तनु की आंखें नम हो गई और गंगा जी ने देवरथ को पिता को नमस्कार करने के लिए कहा. उसके बाद शान्तनु ने देवरथ को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया गंगा माँ ने देवरथ को शान्तनु को सोप कर अन्तर ध्यान हो गई यही कारण था की जब महऋषि वशिस्ट का गुस्सा शांत हुआ तब उन्होंने श्राप से मुक्त होने का उपाय भी बताया और कहाँ की अगर Ganga Ji आपको अपने ही जल मैं समाधी देगी ने अपने सातों पुत्रों को श्राप मुक्त करने के कारण गंगा जल मैं पर्वाहित किया .