उत्तराखण्ड देवी देवताओ की धरती है इस लिए उत्तराखण्ड को देव भूमि कहा जाता है यहाँ पर Panch Prayag जैसे धार्मिक स्थल है यहाँ पर श्रद्धालु दर्शन करने आते है यहाँ पर फोटोग्राफी भी करते है कुछ लोग विडियो ग्राफी भी करते है यहाँ नदियों के संगम को देख कर बहुत ही सकूंन मिलता है नदियों को देख कर ऐसे लगता है जैसे बहने आपस मैं एक दुसरे को गले लगा रही हों यहाँ पर लोग दूर दूर से दर्शन करने आते है यहाँ का नज़ारा बहुत ही आकर्षक होता है यहाँ पर पर्वतों से निकलती हुई नदियों के दर्शन हो जाते है यहाँ से सुन्दर पर्वत भी देखने को मिलते है आज जानते है Panch Prayag के बारे मैं
Panch Prayag रास्ता
दिल्ली से ऋषिकेश 241 किलोमीटर की दूरी पर है और ऋषिकेश से आपको देवप्रयाग के लिए बस और टेक्सी मिल जाती है यहाँ से sharing सवारी भी जाती है ऋषिकेश से देवप्रयाग 70 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ है रुद्रप्रयाग देवप्रयाग से 69 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है कर्ण प्रयाग रुद्रप्रयाग से 31 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है नन्द प्रयाग कर्ण प्रयाग से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है विष्णु प्रयाग नन्द प्रयाग से 68 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है और जोशीमठ से नन्द प्रयाग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है इस रूट के दवारा आप Panch Prayag की यात्रा कर सकते है
विष्णु प्रयाग
Panch Prayag के विष्णु प्रयाग जाने के लिए आपको पहले जोशीमठ जाना पड़ता है जोशीमठ से हम बद्रीनाथ की ओर चलते है तो लगभग 7 किलोमीटर पर विष्णुप्रयाग डेम है जब चार धाम यात्रा होती है तो यहाँ पर बहुत ही चहल पहल होती है काफी भीड़ होती है प्रयाग की लिस्ट मैं ये सबसे पहले प्रयाग है इस जगह तक अलकनंदा नदी को पहुचने मैं 50 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है
पश्चिमी धौली गंगा नदी को यहाँ तक पहुचने के लिए 85 किलोमीटर का सफ़र तय करना पड़ता है जो लोग बद्रीनाथ धाम की यात्रा करते है वो यहाँ पर जरुर रुकते है और स्नान करने के बाद ही आगे बढते है यह सबसे सुन्दर प्रयाग है और यहाँ पर बहुत ही शांत वातावर्ण है जिसे देख कर मन को सकूंन मिलता है यहाँ पर भगवान का विष्णु नारायण मंदिर भी है यहाँ पर संगम का दृश देखने वाला होता है यहाँ का पानी साफ़ और निर्मल होता है जब बारिश होती है यहाँ से आप सुन्दर पर्वतो के दर्शन कर सकते है
विष्णु प्रयाग पंच प्रयागों मैं से सबसे ऊचा और उत्तर मैं स्थित प्रयाग है इस की ऊचाई समुन्दर तल से 1458 मीटर है माना जाता है की नारदमुनी ने इसी स्थान पर विष्णु की आराधना की थी उनकी पूजा और भक्ति से खुश हो कर भगवान विष्णु जी ने उन्हें यहाँ पर ही दर्शन दिए थे इस स्थान पर भगवान विष्णु जी के प्रकट होने पर ही इस जगह का नाम विष्णु प्रयाग पड़ा है इस जगह पर दो पहाड़ है एक को जय और दूसरे को विजय कहा जाता है जय और विजय भगवान विष्णु जी के दवारपाल माने जाते है क्यूंकि इस जगह से बद्री का आश्रम शुरू होता है जहाँ पर भगवान विष्णु निवास करते है बद्री आश्रम का वर्णन भगवद पुराण मैं भी मिलता है विष्णु प्रयाग मैं संगम के बाद अलकनंदा नदी आगे बढती है और नन्द प्रयाग मैं पहुचती है
यह Panch Prayag मैं सबसे पहला प्रयाग है यहाँ पर पश्चिमी धौली गंगा नदी और अलकनंदा नदी का संगम होता है विष्णु प्रयाग चमोली जिले के जोशीमठ से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है
अलकनंदा नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ है लक्ष्मण गंगा, सरस्वती, पश्चिमी धौली गंगा ,विरथी बलखिला,नंदाकिनी,पिंडर व मंदाकिनी आदि इसकी सहायक नदियाँ है अलकनंदा नदी राज्य की प्रमुख नदी है अलकनंदा नदी मैं लक्ष्मण गंगा पन्दुकेश्वर शहर से थोडा दूर से पहले गोबिन्दघाट पर मिलती है
पश्चिमी धौली गंगा नदी विष्णु गंगा के नाम से भी जानी जाती है इस की लम्बाई 82 किलोमीटर है पश्चिमी धौली गंगा नदी धौलीगिरी पर्वत के कुनगुल श्रेणी से निकलती है धौलीगिरी पर्वत विश्व का 7वा सबसे बड़ा पर्वत है इसकी ऊंचाई 8167 मीटर है इस पर्वत का जनक k2 पर्वत को माना जाता है जो की विश्व का दूसरा बड़ा पर्वत है इसकी उचाई 8611 मीटर है पश्चिमी धौली गंगा नदी की सहायक नदियाँ ऋषिगंगा ,गणेशगंगा ,कियोगाढ,किरथी आदि है
नन्द प्रयाग
Panch Prayag विष्णु प्रयाग से नन्द प्रयाग की दूरी 72 किलोमीटर है नन्द प्रयाग सागर तल से 2805 फीट की ऊचाई पर स्तिथ है नन्द प्रयाग पंच प्रयागों मैं उत्तर दिशा से दूसरे नंबर का प्रयाग है यहाँ पर अलकनंदा नदी और नंदाकिनी का संगम होता है नन्द प्रयाग की समुन्दर तल से ऊचाई 1358 किलोमीटर है इस संगम मैं गोपाल जी का मंदिर स्तिथ है नन्द प्रयाग का मूल नाम कणडासु था इस जगह का नाम नन्द प्रयाग इस लिए पड़ा क्यूँकि यहाँ पर नंद महाराज ने बरसो तक तप किया था स्कन्दपुराण मैं इसे कणवाश्रम भी कहा गया है यहाँ से कुछ ही दूरी पर बहुत प्रसिद्ध मंदिर है जिनके नाम विशिटेश्वर महादेव,चंडिका, लक्ष्मीनारायण है यहाँ पर गोपालनाथ जी का मंदिर विशेष दर्शनीय है जो की मुख्य आकर्षित केंदर है नन्द प्रयाग का घाट कंकरीट का बना है नगर पंचायंत ने यहाँ पर एक पार्क भी बना दिया है जहाँ पर बैठ कर लोग लगातार जल का पर्वाह देख सके और इसका आनंद उठा सके
नन्द प्रयाग की यात्रा करने का अच्छा समय अक्टूबर और नवम्बर कहा जाता है यहाँ पर्वतों पर बर्फ जमी होती है और फरवरी मैं यहाँ पर बहुत ही ठण्ड होती है
महत्व
कहा जाता है की यहाँ पर नन्द महाराज ने पुत्र प्राप्ति के लिए यहाँ पर बड़ा यग्य और तपस्या की थी नन्द प्रयाग से सात मील दूर पर्वत पर वैरागकुण्ड भी है जहाँ पर महादेव का मंदिर है यह वही मंदिर है जहाँ पर रावण ने अपने दस सिर काट कर चढ़ाये थे
नंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल त्रिशूल पर्वत से हुआ है त्रिशूल पर्वत हिमालय की तीन चोटियों का संगम है जो कुमाऊ के बागेश्वर जिले के निकट स्तिथ है पुराणों के अनुसार नंदाकिनी नदी का जल देवताओं को यहीं चढ़ाया जाता है
कर्णप्रयाग
Panch Prayag विष्णु प्रयाग से कर्णप्रयाग की दूरी 94 किलोमीटर है कर्णप्रयाग चमोली जिले मैं आता है कर्णप्रयाग मैं अलकनंदा नदी और पिण्डर नदी का संगम होता है पिण्डर नदी को कर्ण गंगा भी कहा जाता है तभी इस जगह का नाम कर्ण प्रयाग पड़ा है यहाँ पर भगवती उमा देवी का मंदिर है और कर्ण मंदिर स्तिथ है माना यह भी जाता है की महाभारत के महान योधा कर्ण के नाम पर ही इस जगह का यह नाम रखा गया है
यहाँ पर दानवीर कर्ण के तप स्थल और मंदिर है बद्रीनाथ जाते समय सभी श्रद्धालुऔ को पैदल यात्रा करते हुए कर्णप्रयाग से जाना होता है कर्णप्रयाग पोराणिक समय मैं उन्नति शील बाज़ार भी था फिर लोग जगह जगह से आकर लोग यहाँ पर निवास करने लगे क्यूँकी यहाँ पर व्यापार के साधन उपलब्ध थे
महत्व
पुराणिक समय मैं कर्ण ने उमा देवी की शरण मैं रह कर इस संगम स्थल पर भगवान सूर्य की कठोर तपस्या की थी जिससे की भगवान शिव कर्ण की तपस्या को देख कर खुश हुए और भगवान सूर्य ने अभियदे कवच,कुण्डल,अक्षय धनुष प्रदान किया था कर्ण मंदिर इस स्थान पर स्तिथ होने के कारण स्नान करने के बाद कुछ न कुछ दान करना अत्यन्तं
पून्य कारी माना जाता है कहा जाता है भगवान कृष्ण ने यही पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था इस लिए इस जगह पर पित्रों को तर्पण देना भी महत्वपूर्ण माना जाता है
कर्ण प्रयाग की अन्य कथा ये भी है की भगवान शिव के दवारा अपमान किये जाने पर माँ पार्वती अग्निकुण्ड में कूद गई थी तो उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में उमा देवी के नाम से लिया और शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी इसी स्थान पर माँ उमा देवी का मंदिर भी है
रूद्रप्रयाग
Panch Prayag विष्णु प्रयाग से रूद्रप्रयाग 125 किलोमीटर है रूद्रप्रयाग गगोत्री से 270 किलोमीटर की दूरी पर है रूद्रप्रयाग समुन्दर तल से 3000 फीट की ऊचाई पर बसा है
महत्व
यहाँ पर रूद्र मंदिर है जो की भगवान शिव के रूद्र अवतार को समर्पित है माना जाता है यहाँ पर नारदमुनी ने यहाँ पर भगवान शिव की उपासना की थी नील कंठ महाराज ने नारदमुनी को यहाँ पर ही आशीर्वाद दिया था जब वो भगवान रूद्र अवतार के रूप मैं यहाँ प्रकट हुए थे रूद्रप्रयाग मैं अलकनंदा नदी और मंदाकिनी नदी का संगम होता है भगवान शिव जी का एक नाम रूद्र भी है रूद्र का नाम गर्जना होता है यहाँ पर भगवान शिव जी के रूद्र रूप मैं प्रकट होने के कारण इस जगह का नाम रूद्रप्रयाग पड़ा है यहाँ पर स्तिथ शिव और जगदम्बा मंदिर प्रमुख धार्मिक स्थानों में से है
मंदाकिनी नदी केदारनाथ के चोराबरी गलेशियर से निकलती है ऐसा लागत है जैसे दो बहने एक दुसरे के गले लगा रही हो और इसे चोराबरी के नाम से भी जाना जाता है मंदाकिनी नदी की पहली नदी काली गंगा है जिसे सोन गंगा के नाम से भी जाना जाता है जो की बासुकी ताल से निकलती है जो की टिहरी गढ़वाल मैं स्तिथ है तथा सोन प्रयाग मैं ये नदियाँ आपस मैं मिल जाती है मंदाकिनी नदी की दूसरी सहायक नदी मधुगंगा है जिस मदमहेश्वर गंगा भी कहा जाता है जो की मदमहेश्वर पर्वत से निकल कर कालीमठ जगह पर मंदाकिनी नदी के साथ मिलती है मंदाकिनी नदी के तट पर गुप्तकाशी ,अगस्तमुनी ,तिलवाडा आदि स्थान बसे हुए है
देव प्रयाग
Panch Prayag विष्णु प्रयाग से देव प्रयाग की दूरी 190 किलोमीटर है देव प्रयाग मैं अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी का संगम होता है पंच प्रयागों मैं ये कम ऊचाई वाला प्रयाग है देव शर्मा नामक तपस्वी ने यहाँ पर तपस्या की थी उन्ही के नाम पर इस स्थान का नाम देवप्रयाग रखा गया है देवप्रयाग को श्री राम जी की तप भूमि भी कहा जाता है
महत्व
माना जाता है श्री राम जी ने जब रावण का वध किया था तब उन पर ब्रम हत्या का दोष लगा था तब यहाँ पर राम लक्षमण और सीता जी ने तप किया था इस लिए इसे राम जी की तप भूमि भी कहा जाता है अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी एक होकर गंगा नदी का निर्माण करती है सभी प्रयागों मैं से देवप्रयाग का अधिक महत्व है
अलकनंदा नदी की लम्बाई देवप्रयाग तक 195 किलोमीटर है यह नदी उत्तराखण्ड की सर्वाधिक जल प्रवाह वाली नदी है अलकनंदा नदी चमोली रुदप्रयाग पौड़ी और तिहरी जिलो मैं बहती है भागीरथी नदी उत्तरकाशी चमोली जिले की सीमा पर स्तिथ शिवलिंग पर्वत उत्तर पूर्वी ढाल पर गंगोत्री ग्लेशियर के गौमुख नामक स्थान से निकलती है भागीरथी दो जिलो मैं बहती है जिसका नाम उत्तरकाशी और तिहरी है देवप्रयाग तक भागीरथी की लम्बाई 205 किलोमीटर है भागीरथी की सहायक नदियाँ केदारगंगा जो की केदार गाँव से निकलती है फिर जाड या जहवी नदी, मिलुनगंगा ,रुद्र्गंगा ,अस्सी गंगा ,भिलगंना नदी है तिहरी का प्राचीन नाम गणेश प्रयाग माना जाता है इस जगह पर भागीरथी और भिलंगना नदी का संगम होता है भिलगंना जो की भागीरथी की सबसे बड़ी सहायक नदी है और तिहरी इसी सगम पर बसा हुआ है
यहाँ पर बेताल सिला से स्नान से कुष्ट रोग का इलाज़ होना भी माना जाता है देवप्रयाग मैं दो झूलता पुल भी है एक झूला अलकनंदा और दूसरा भागीरथी गंगा नदी मे है बहुत श्रद्धालु यहाँ पर दर्शन करने आते है पुल की अगर बात करें तो यह पुल झूले के सामान हमेशा ही झूलते रहते है ऐसा एहसास हर एक मनुष्य को यहाँ पर चलते हुए महसूस होता है यहाँ पर रिवर रफ्त्तिंग ट्रेकिंग आदि का लुफ्त उठा सकते है यहाँ का नज़ारा बहुत ही अच्छा देखने का होता है देवपयाग के पास ही एक दश्रांचल नामक पहाड़ी भी है जहाँ पर एक चट्टान को दशरथ सिला कहा जाता है कहा जाता है इस सिल्ला पर राजा दशरथ ने यहाँ पर बैठ के तप किया था यहाँ से एक धारा भी बहती है जो की रजा दशरथ की पुत्री संन्ता की नाम पर संन्ता भी रखा गया है
panch prayag की यात्रा करना शुभ माना जाता है यहाँ पर आपको बहुत ही अच्छा लगेगा यह जगह आपको मनमोहक कर देगी यहाँ बहुत अच्छे धार्मिक स्थल है यहाँ पर बहती नदी की लहरों को देख कर आप भी खुश हो जायेगे एक बार आइये आप भी और Panch Prayag की यात्रा का आनंद ले .