एक बार एक गाँव मैं एक Murtikar रहा करता था वो बहुत ही खुबसूरत मूर्तियाँ बनाया करता था और Murtikar मूर्तियाँ बेच कर अच्छा धन कमा लिया करता था वो अपने घर का पालन पोषण मूर्तियाँ बना कर किया करता था वो अपनी अच्छी मूर्तियाँ बनाने के लिए जाना जाता था उसने देखा की उसके माँ बाप बूढ़े होते जा रहे है तो उसके मन मैं ख्याल आया की क्यूँ न अपने माँ बाप के देख रेख के लिए शादी की जाये फिर उसने एक गरीब लड़की से शादी कर ली शादी के दिन बहुत ही अच्छे गुज़र रहे थे और वो लड़की उसके माँ बाप की अच्छी सेवा भी करती थी
शादी के बाद उसे एक बेटा पैदा हुआ जिसे वो देख कर बहुत खुश हुआ करता था उसके बाद बेटा धीरे धीरे थोडा बड़ा हुआ फिर वो अपने पिता को मूर्ति बनाते देखता था उसका भी मन्न किया कि वो मूर्तियाँ बनाये फिर उसने भी मूर्तियाँ बनानी शुरू कर दी बेटे ने भी धीरे धीरे अच्छी मूर्तियाँ बनानी शरू कर दी उसका मन् मूर्तियाँ बनाने मैं लग गया वो देखते देखते बहुत अच्छी मूर्तियाँ बनाने लग गया और अच्छा Murtikar बन गया जब पिता उसे मेहनत करते हुए देखता था तो वो बहुत ही खुश हुआ करता था बेटें को कामयाब हुए देख कर उसका मन् बहुत प्रशन्न था जब भी
उसका बेटा मूर्तियाँ बनाता था वो पिता उसकी मूर्तियों मैं कोई न कोई कमी निकाल दिया करता था और उसे हमेशा कहता था की बेटा अगली बार इस कमी को दूर करने की कोशिश करना बेटा भी आगे से कोई भी शिकायत नहीं करता था बेटा अपनी पिता की बातों को सुनता रहता था और आपने पिता की बताई कमियों को दूर करने की और ध्यान देता था और अपनी मूर्तियों को और बेहतर करता रहा पिता की बताई कमियों का सुधार करते करते बेटे की मूर्तियाँ पिता से भी अच्छी बनने लगी और धीरे धीरे इस सुधार की वजह से एक समय ऐसा आ गया कि लोगों को उसके बेटे की मूर्तियाँ ज्यादा पसंद आने लगी और लोग उसके बेटे की मूर्तियों को ज्यादा पैसे दे कर खरीदने लगे
पिता की मूर्तियाँ पहले वाले दामो पर ही बिकती रही फिर पिता बेटे की बनाई मूर्तियों मैं अकसर कमी निकाल ही देता था बेटे को ज्यादा पैसे मिलने लगे थे और उसकी मूर्तियाँ बहुत बिकने लगी थी जिसकी वजह से उसे यह सुनना अब अच्छा नहीं लगता था और वो बिना किसी मन् के पिता की बात को मान लेता था और अपनी मूर्तियों मैं जैसे पिता ने कहा वैसे ही सुधार कर देता था
बेटे के पिता ने उसे फिर मूर्ति मैं कमी निकल दी और उसका सब्र अब जवाब दे गया फिर बेटे ने कहा की पिता जी आप तो ऐसे कह रहे है जैसे की आप बहुत ही बड़े मूर्तिकार है आप हमेशा ही मेरे काम मैं कमियां निकलते रहते है अगर आप बड़े मूर्तिकार होते तो आपकी मूर्तियाँ कम पैसो मैं नहीं बिकती मुझे लगता है पिताजी मुझे आपसे सलाह लेने की जरूरत नहीं है मेरी नज़र मैं मुझे लगता है कि मेरी मूर्तियाँ बहुत अच्छी बनाई हुई है और मैं अच्छा Murtikar हूँ
पिता को बेटे की इस बात का बहुत बुरा लगा पिता ने अपने बेटे को फिर सलाह देना और बेटे की मूर्तियों मैं कमियां निकालना बंद कर दिया कुछ महीनो तक बेटा मूर्तियाँ बनाता रहा और खुश था फिर उसने धीरे धीरे दिखने लगा की लोग अब उसकी मूर्तियों की अब तारीफ नहीं करते जितना लोग पहले किया करते थे फिर उसकी मूर्तियों की कीमत भी बढनी धीरे धीरे कम हो गई शुरू मैं उसको इसकी समझ नहीं आई ऐसा हो क्यूँ रहा है फिर वो कुछ समय उदास रहा फिर उसने अपने पिता से पूछने का मन् बनाया
बेटा फिर अपने पिता के पास गया और उसने अपने पिता को पूरी बात बताई पिता ने अपने बेटे की बातों को बहुत शांति से सुना और बेटे की तकलीफ को महसूस करने लगा उसे इस बात का जैसे पहले से ही पता था की एक दिन ऐसा भी आयेगा और बेटे ने पिता की ओर देखा उसने भी भाप लिया की पिता जी को इसका पहले से पता था तो उसने पिता जी से सवाल किया पिता जी क्या आपको इस बात का पहले से पता था की मेरे साथ ऐसा होने वाला है
पिता ने आगे से बेटे को जवाब दिया बिलकुल मुझे इस बात का पता था की ऐसा होने वाला है क्यूँ कि बेटा मैं भी इस हालात से गुजर चुका हूँ बेटे ने पिता को कहा पिताजी अगर आपको इस बात का पता था तो आपने मुझे उस वक़्त क्यूँ नहीं समझाया फिर पिता ने बहुत नर्म हो कर उसे कहा बेटा आप उस वक़्त मेरी बात को समझना ही नहीं चाहते थे
पिता ने उसे कहा की बेटे मैं इस बात से पूरा सहमत हूँ कि मैं अपने बेटे से अच्छी मूर्तियाँ बिलकुल नहीं बनाता हूँ और न ही अच्छा Murtikar हूँ बेटे यह भी हो सकता है की मेरी सलाह मूर्तियों के लिए गलत भी हो और ऐसा भी नहीं है की मेरी सलाह की वजह से तेरी मूर्तियाँ बेहतर बनती हो लेकिन जब मैं तुझे तेरी मूर्तियों मैं कमी दिखाता था तब तुम अपनी बनाई मूर्तियों से संतुष्ट नहीं होते थे तुम अपने आप को बेहतर करने की कोशिश मैं लगे रहते थे वो ही लगन और कोशिश तुम्हारी कामयाबी का मुख्य कारण था
जिस दिन तुम अपने काम से संतुष्ट हो गए और तुमने ये भी मान लिया की मूर्तियों को और बेहतर करने की गुन्जाइश ही नहीं है उस दिन तुम्हारा विकास भी रुक गया लोग हमेशा तुमसे ओर बेहतर की उम्मीद करते है यही कारण है अब तुम्हारी मूर्तियों के लिए तुम्हारी तारीफ नहीं होती और ना ही उनकी तुम्हे ज्यादा कीमत मिलती है
बेटा यह सब सुनकर थोड़ी देर चुप रहा फिर उसने पिता से सवाल किया पिता जी अब मुझे आगे क्या करना चाहिए पिता ने आगे से जवाब दिया की असंतुष्ट होना सिख लो मान लो की तुम्हे बेहतर होने की गुन्जाइश बाकि है यही एक बात तुम्हे आगे बड़ने के लिए प्रेरित करती रहेगी और ज़िन्दगी मैं यही बात तुम्हे और बेहतर बनाती रहेगी तुम अपनी मूर्तियों को पहले से भी और अच्छा बना सकोगे फिर से वही लोग तुम्हारी तारीफ करना शुरू कर देंगे यह सुन कर बेटा फिर अपने काम पर लग गयाऔर बेहतर Murtikar बने की और प्रेरित हुआ पिता की इस बात के ऊपर अमल करने लगा